“भारतीय सांकेतिक भाषा(आईएसएि) को देि भर में मानकीकृ त शकया जाएगा, और राष्ट्रीय और राज्य पाियक्रम सामग्री शवकशसत की जाएगी, जो बशधर शवद्याशथणयों द्वारा उपयोग की जाएगी। जहाुँसंभव और प्रासंशगक हो वहाुँस्थानीय सांके शतक भाषाओं का सम्मान शकया जाएगा और उिें शसखाया जाएगा।“ ( राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, अध्याय 4, बिंदु संख्या 4.22, पृष्ठ 16).
विचार और भाव केवल शाब्दिक अर्थ नहीं होते, इससे कहीं अधिक होते हैं। हमारे द्वारा पढ़ा गया प्रत्येक शब्द हमारे अंदर एक विचार एक भावना एक स्मृति या एक दृश्य कल्पना को जगाता हैं। भारतीय कलाओं और ललित कलाओं में गूढ़ और जटिल विचारों के रागात्मक भाषेतर संचार का लंबा इतिहास रहा है। भारतीय लोक कलाँए संम्प्रेषण विचारों की ऐसी ही भाषेतर एवं रागात्मक अभिव्यक्तियों का उदाहरण हैं। भारतीय सांकेतिक भाषा ( ISL ) के मानकीकरण के संदर्भ में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (रा.शैं.अ.प्र.प.) भारत के कल्पनाशील युवा मन/मस्तिष्क को यह रचनात्मक अभिव्यक्ति साझा करने के लिए आमंत्रित करता है, कि ‘शब्द’ उनके लिए क्या मायने रखता हैं।
यह प्रतियोगिता उन सभी भारतीयों के लिए खुली है जो या तो कक्षा 9वी से 12वीं तक के छात्र है, महाविधालय के छात्र है, या किसी संकाय के सदस्य के रुप में कार्यरत है। रा.शैं.अ.प्र.प. ISL शब्दकोश को समृद्ध करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है। बिना किसी मौखिक या टंकित अंश/ घटको के दृश्य रुप में दर्शाने हेतु 200 से अधिक शब्दों की एक सूची बनाई गई हैं।
शब्दों को दृष्टिगत रुप से दो श्रेणी के माध्यमों से दर्शाया जा सकता हैं –
- कला संयोजन
- प्रदर्शन कला के वीडियो क्लिप